Thursday, January 28, 2021

मानव कल्याण में सूक्ष्मजीवों की भूमिका का वर्णन - पूरी जानकारी औद्योगिक उत्पादन में सूक्ष्मजीवों की भूमिका

मानव कल्याण में सूक्ष्मजीवों की भूमिका का वर्णन - पूरी जानकारी औद्योगिक उत्पादन में सूक्ष्मजीवों की भूमिका

नमस्कार स्टूडेंट्स मित्रो आज हम आपके लिए एक बहेतरिन न्यू आर्टिकल बायोलॉजी के रिलेटेड लेकर आया हूं तो आप उसे ध्यान से पढ़िए गा। इस आर्टिकल में आपको मानव कल्याण में सूक्ष्मजीवों की भूमिका का वर्णन - पूरी जानकारी औद्योगिक उत्पादन मेंसूक्ष्मजीवों की भूमिका 

Description of the role of microorganisms in human welfare - complete information

मानव कल्याण में सूक्ष्मजीवों की भूमिका का कई पदों में अध्ययनकिया जा सकता है

1. घरेलू खाद्य उत्पादों में

2. औद्योगिक उत्पादन में

3. प्रतिजैविक या औषधि उद्योग में

4. कृषि क्षेत्र में जैव उर्वरक के रूप में

5. वाहितमल उपचार में

7. जैव नियन्त्रण कारक के रूप में

1. घरेलू खाद्य उत्पादों में

ईसा पूर्व से ही मानव घरेलू भोज्य पदार्थ बनाने में कुछ जीवाणुओं और यीस्ट कोशिकाओं का रसोई में उपयोग करता आया है और आज भी कर रहा है।

(i) दही या योगर्ट (Curd or Yogurt): दूध से दही बनाने के लिये उसमें जामन लगाते हैं। थोड़े से जामन में लाखों करोड़ों की संख्या में दो प्रकार के बैक्टीरिया होते हैं: स्ट्रेप्टोकोकस थर्मोफाइलस तथा लैक्टोबेसिलस बल्गेरिकस।

दही में विटामिन B12 की मात्रा दूध से कहीं अधिक होती है। अत:दही की पोषण सम्बन्धी गुणवत्ता भी अधिक होती है। लैक्टोबेसिलस बैक्टीरिय हमारे पेट में सूक्ष्मजीवियों द्वारा उत्पन्न होने वाले विकारों सेरक्षा करते हैं।

(ii) पनीर (Paneer or cheese): दूध के लैक्टिक एसिड

किण्वन से पनीर बनता है । स्ट्रैप्टोकोकस तथा लैक्टोबेसिलस की विभिन्न जातियों का विभिन्न प्रकार के पनीर बनाने में प्रयोग किया जाता है

(iii) खमीर वाले पदार्थों को तैयार करना (Preparation of Fermented Batter): चावल व उड़द की दाल की पिट्ठी को ल्यूकोनॉस्टॉक तथा स्ट्रेप्टोकोकस जीवाणुओं के द्वारा किण्वित कराया जाता है। इस किण्वित घोल से इडली, डोसा बनाते हैं। खमीर वाले आटे के घोल से जलेबी बनाई जाती हैं।

(iv) डबल रोटी : डबल रोटी बनाने के लिये यीस्ट के बेकर स्ट्रैन द्वारा वायु की उपस्थिति में आटे में खमीर उठाया जाता है। गोभी, गाजर, शलजम, आदि के अचार भी इसी प्रकार बनाये जाते हैं।

2. औद्योगिक उत्पादन में

सूक्ष्मजीवों के उपयोग द्वारा बहुत से मादक पेय औद्योगिक स्तर पर संश्लेषित किये जाते हैं।

(i) वाइन, बीयर- वाइन, बीयर, व्हिस्की, ब्रांडी या रम व वोडका आदि ऐल्कोहॉलीय पेय यीस्ट कोशिकाओं द्वारा तैयार किये जाते हैं। अंगूर के रस के सैकेरोमाइसीज सेरेविसी तथा सैकेरोमाइसीज एलिप्सोइडियस द्वारा किण्वन से वाइन बनती है।

(ii) सिरका व ऐसीटिक एसिड- माइकोडरमा एसिटी ऐसीटोबैक्टर

ऐसीटी नामक बैक्टीरिया द्वारा शर्करा के घोल का किण्वन करके सिरका व ऐसीटिक एसिड बनाये जाते हैं

(iii) ऐल्कोहॉल व ऐसीटोन: शर्करा के घोल से ब्यूटाइल ऐल्कोहॉल व ऐसीटोन बनाने के लिये क्लॉस्ट्रिडियम ऐसीटोब्यूटाइलिकम जीवाणु का प्रयोग किया जाता है।

(iv) चाय व तम्बाकू की पत्तियों को पकाना : कुछ बैक्टीरिया चाय व तम्बाकू की पत्तियों पर किण्वन करके उनमें विशेष प्रकार की सुगन्ध व स्वाद उपन्न करते हैं। इसी प्रकार कॉफी व कोको के उत्पाद की विधि में भी बैक्टीरिया काम में लाये जाते हैं। कोको में चॉकलेट का स्वाद बैक्टीरिया की किण्वन क्रिया के कारण होता है।

3. प्रतिजैविक या औषधि उद्योग में

सूक्ष्मजीवों एवं उनके उत्पादों का औषधीय रूप में भी अत्यधिक महत्त्व है।

(i) एण्टीबायोटिक्स (Antibiotics) : एलेक्जेंडर फ्लेमिंग ने सन् 1928 में स्टेफाइलो कोकस जीवाणु पर प्रयोग करते समय सर्वप्रथम पेनिसिलिन नामक एण्टीबायोटिक की खोज की थी।

Streptomycin, aureomycin तथा terramycin इसी प्रकार के पदार्थ हैं जो बैक्टीरिया द्वारा उत्पन्न निमोनिया, डिफ्थीरिया, तपेदिक, टाइफॉइड, आदि घातक रोगों में अत्यन्त लाभदायक सिद्ध हुए हैं। कुछ बैक्टीरिया के एण्टीजन्स से चेचक, हैजा व अन्य रोगों के वैक्सीन (vaccine) बनाये जाते हैं।

4. कृषि क्षेत्र में जैव उर्वरक के रूप में

(i) जैव उर्वरक (Biofertilisers): जैव उर्वरक वे जीव हैं जिनसे मृदा की पोषक गुणवत्ता में वृद्धि होती है । ये जीवाणु, कवक तथा नीलहरित शैवाल हैं । लेग्यूमिनस पादपों के मुलो में ग्रन्थियों में राइजोबियम बैक्टीरिया का सहजीवी होता है । यह वायुमण्डल की नाइट्रोजन वायु स्थिरीकृत कर कार्बनिक रूप में परिवर्तित कर देता है ।

(ii) नाइट्रोजन स्थिरीकरण (Nitrogen Fixation) : कुछ जीवाणु वायु में उपस्थित नाइट्रोजन को नाइट्रोजन के यौगिकों में बदल देते हैं। जैसे एजोटोबेक्टर (Asotobacter) तथा क्लोस्ट्रीडियम आदि। लेग्यूमिनोसी कुल के पौधों की जड़ों में ग्रन्थियाँ मिलती हैं। इनमें रहने

वाले जीवाणु राइजोबियम लेग्यूमिनोसेरम वायु से मुक्त नाइट्रोजन को अवशोषित करके नाइट्रोजन यौगिक बनाते हैं। नाइट्रीफाइंग जीवाणु (NitrifyingBacteria) : अमोनिया को नाइट्राइट में बदलने वाले जीवाणु जैसे - नाइट्रोसोमोनास नाइट्राइट्स को नाइट्रेट में बदलने वाले बैक्टीरिया  जैसे कि  - नाइट्रोबेक्टर

(iii) मृत पौधों तथा जन्तुओं का सड़ना- कुछ जीवाणु पौधों और जन्तुओं के मृत शरीर के जटिल यौगिकों को सरल पदार्थों में विघटित करते है। प्रकार भूमि की उर्वरा शक्ति बढ़ती है और मृतक विघटित हो जाते हैं। बैसिलस मायकोडीस, बेसिलस रेमोसस तथा बेसिलस वुल्गेरिस मृतक जीवों को विघटित करते हैं।

5. वाहितमल उपचार में सूक्ष्मजीव

अपशिष्ट पदार्थों में मल-मूत्र व अतिरिक्त कूड़ा-करकट व नगरों से बहकर आने वाला जल भी सम्मिलित होता है। इसमें उपस्थित ठोस कार्बनिक पदार्थों को सड़ाने में सूक्ष्मजीवों की अहम भूमिका है। सीवेज के अवक्षेप को खाद के रूप में काम में लाते हैं।

6. ऊर्जा उत्पादन या बायोगैस उत्पादन में

बायोगैस उत्पादन में सूक्ष्मजीव -बायोगैस कई गैसों का मिश्रण है, जिसमें सर्वाधिक मात्रा मेथेन की होती है। यह सूक्ष्मजीवों की क्रिया द्वारा पैदा होती है। इन जीवाणुओं को मेथेनोजेन के नाम से जानते हैं। मेथेनोबैक्टीरियम इनमें से एक है।

7. जैव नियन्त्रण कारक के रूप में

रसायन कीट नाशक, पीड़क नाशक व शाक नाशक के रूप में रासायनिक पदार्थों का उपयोग मानव व जन्तुओं के लिए हानिकारक सिद्ध हुआ है। इनका पर्यावरण पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। ये फल, सब्जी आदि पर हानिकारक प्रभाव डालते हैं जिससे मानव को हानि

होने की सम्भावना बनी रहती है। अत: सूक्ष्मजीवों को पौड़क नाशक के रूप में प्रयोग में लाने की सम्भावनाओं पर कार्य चल रहा है। रोगजनक वाइरस, जीवाणु, कवक कुछ प्रोटोजोआ तथा निमेटोड द्वारा पीड़क कीटों को संक्रमित करके उन्हें नष्ट किया जा सकता है

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